अगर आप Konark Temple के बारे में जानकारी ढूंढ रहे हैं और आपको यह जानकारी कहीं नहीं मिल रही है तो आप बिल्कुल सही जगह पर है। आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कोणार्क मंदिर की पूरी जानकारी हिंदी में देंगें। जैसे की कोणार्क मंदिर कहां है, इसकी स्थापना कब हुई थी, इसके स्थापना के पीछे की क्या कहानी है, इस मंदिर का क्या इतिहास है, यह मंदिर क्यों इतना प्रसिद्ध है, इस मंदिर में पूजा पाठ करने के क्या नियम है?
तो जाहिर सी बात है कि अगर आप हमारे साथ जुड़े रहते हैं और हमारे इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ते हैं तो आपको निश्चित ही कोणार्क मंदिर की बारे में पूरी जानकारी अच्छे से मिल जाएगी।
Name | Konark Sun Temple |
Located at | Puri district, Odisha |
Temple height | 229 feet (70 m) |
Temple Architecture | Kalinga Architecture |
Timings | 6am to 8am(Sunday to Saturday) |
Entry ticket price | Rs. 40/– For Indian and Rs. 600/– For Foreigner |
Contact Number | +91 6758236821 |
Official Website | www.konark.nic.in |
State | Odisha |
Contents
Where is Konark Temple | कोणार्क मंदिर कहां है?
कोणार्क मंदिर जो कि एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यह भारत के उड़ीसा राज्य के एक छोटे से शहर कोणार्क में स्थित है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। यह सूर्य मंदिर पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। लोगों का ऐसा मानना है कि दुनिया में जितने भी सूर्य मंदिर है उन सारे मंदिरों में से कोणार्क का सूर्य मंदिर सबसे बड़ा और भव्य मंदिर है। इस मंदिर को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी जाती है।
When was it established | इसकी स्थापना कब हुई थी?
कोणार्क मंदिर का कोणार्क दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द कोण है और दूसरा शब्द अर्क है। पहले शब्द यानी कि कोण का मतलब किनारा या फिर किसी प्रकार का कोई कोना होता है। और दूसरे शब्द अर्क का मतलब सूर्य होता है। हम जिस कोणार्क मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं इस कोणार्क मंदिर को सन 1236 ईस्वी पूर्व में वहां के तत्कालीन राजा नृसिंहदेव जी के द्वारा इस मंदिर की स्थापना कराई गई थी।
इस मंदिर को बनाने में लाल रंग की बलुआ पत्थर और काली ग्रेनाइट का प्रयोग किया गया है। इस मंदिर में सूर्य भगवान को रथ की रूप में विराजमान किया गया है। वहां की सभी पत्थरों पर नक्काशी बनाई गई है जो कि देखने में बहुत ही अद्भुत लगती है। वर्तमान समय में सूर्य मंदिर में सिर्फ एक ही घोड़ा बचा हुआ है लेकिन जिस समय मंदिर का निर्माण हुआ था उस समय उस मंदिर में सात घोड़े थे।
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Story behind its establishment | इसके स्थापना के पीछे की क्या कहानी है?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक राजा जो गंगा वंश के राजा थे। उनका नाम नृसिंह देव प्रथम था। उन्होंने अपने वंश के वर्चस्व को सिद्ध करने के लिए राजसी घोषणा करवा कर इस मंदिर के निर्माण कार्य को शुरू करने का आदेश दिया। इस मंदिर को बनाने में लगभग 12 सौ वास्तुकारों और कारीगरों को नियुक्त किया गया।
सारे कारीगरों ने मिलकर मंदिर को बनाने का काम शुरू किया। मंदिर को बनते बनते 12 वर्ष लग गए लेकिन फिर भी मंदिर पूरी तरह तैयार नहीं हुआ। वहां के राजा की 12 साल का खर्च जो उन्होंने अपने मंदिर का निर्माण करवाने में लगाया था वह सारा बर्बाद हो गया। फिर राजा ने सारे कारीगरों को हिदायत दी कि उन्हें एक निश्चित समय में यह मंदिर पूरी तैयार चाहिए। तब उन्हीं के राज का एक 12 वर्ष का लड़का जिसमें मंदिर बनाने की कोई कला नहीं थी लेकिन उसके पास शास्त्र का ज्ञान था। उसने निश्चित समय से पहले ही राजा को मंदिर बना कर दिखा दिया और लोग उसकी खूब प्रशंसा कीए।
लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही उस लड़के की सौ नदी के तट पर मिली। लोगों का ऐसा मानना था कि वह लड़का अपनी जाति के हित के लिए अपनी जान गवा थी।
History of The Konark Temple | इस मंदिर का इतिहास है?
इस मंदिर का इतिहास एक नहीं है अगर हम इस मंदिर के इतिहास के बारे में जानना चाहे तो हमें कई तरह की कहानी मिलेगी। लेकिन अभी तक किसी कहानी को पूरी तरह मत नहीं मिला है कि वही कहानी सही है।
लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है की नृसिंह देव प्रथम राजा की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण इस मंदिर की ढांचा खराब हो गई और यह मंदिर ध्वस्त हो गया। उसके कई सालों बाद इसे फिर से पुनर्निर्माण किया गया।
Why is this temple so famous | यह मंदिर क्यों इतना प्रसिद्ध है?
ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक श्राप के कारण कोढ़ रोग हो गया था। जिस रोग से छुटकारा पाने के लिए श्री कृष्ण भगवान के पुत्र कोणार्क में आकर 12 वर्षों तक तपस्या किए थे। उसके बाद उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देवता जो सभी रोगों का निवारण करते हैं वहां पर प्रकट हुए और उनके रोग का भी निवारण कर दिए।
उसी वक्त साम्ब ने यह तय कर लिया था कि वह सूर्य देव का एक मंदिर बनवाएगा। उसके कुछ दिन बाद जब वह चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहा था तो उसे सूर्य देव की मूर्ति मिली जिस मूर्ति को उसने कोणार्क में जाकर स्थापित कर दिया और वहां पर एक मंदिर का निर्माण करवाया।
Rules for worshiping | पूजा पाठ करने के नियम
भारत में जब जब मुसलमानों ने आंखों ने हमले किए तब तक यहां के मंदिरों को नुकसान पहुंचा है। उस समय सारे मंदिरों के साथ-साथ कोणार्क मंदिर का भी बहुत नुकसान हुआ। मुस्लिम और डाकुओं के हमले के बाद कोणार्क मंदिर सालों तक जंगल में छुपा रहा।
कई सालों बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। और लोग इस मंदिर में पूजा करने जाते थे। लेकिन इस मंदिर की एक खास बात है कि इसमें पूजा करने से पहले आपको सूर्य वंदना करनी जरूरी है।
कई सालों बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। और लोग इस मंदिर में पूजा करने जाते थे। लेकिन इस मंदिर की एक खास बात है कि इसमें पूजा करने से पहले आपको सूर्य वंदना करनी जरूरी है।
Conclusion | निष्कर्ष
आज आपको इस आर्टिकल में हमने बताया कि कोणार्क मंदिर कहां है, इसकी स्थापना कब हुई थी, इसके स्थापना के पीछे की क्या कहानी है, इस मंदिर का क्या इतिहास है, यह मंदिर क्यों इतना प्रसिद्ध है, इस मंदिर में पूजा पाठ करने के क्या नियम है?
तो उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा दी गई सारी जानकारी अच्छे से समझ में आ गई होगी। तो अगर आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और अगर आप चाहे तो इसे अपने सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते हैं। अगर आपको लगता है कि कोणार्क मंदिर के बारे में यह जानकारी इस आर्टिकल में नहीं है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं।
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