क्या आप भी Lingaraj Temple में घूमने जाना चाहते है? क्या आपको भी लिंगराज मंदिर के बारे में जानने कि इक्षा है लेकिन आप नहीं जान पा रहे है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि लिंगराज मंदिर कहा है, ये मंदिर क्यों प्रसिद्ध है, इस मंदिर में किस भगवान कि पूजा कि जाती है, इस मंदिर कि स्थापना कब कि गई थी, लिंगराज मंदिर का रचना एवं सौंदर्य।
तो अगर आप लिंगराज मंदिर के बारे में पूरी तरह जानना चाहते है तो हमारे साथ इस आर्टिकल में बने रहिए। तभी आपको लिंगराज मंदिर के पूरी जानकारी अच्छे से मिल पाएगी।
Temple of | Followers of Hinduism |
God | Lord Shiva is worshiped as Lingaraj,Tribhubaneswar and Lord Vishnu is worshiped as Adinarayana. |
Main Festival | Shivaratri |
Open Timing | 24*7 |
Place | Lingaraj Temple Road, Old Town,Bhubaneshwar, Odisha. |
District | Khurda |
State | Odisha |
Country | India |
Location on Earth | 20.2381° N, 85.8343° E |
Style of Construction | Kalinga Architecture |
Built by | King Jajati Keshari |
Built during | 6th century CE-11th century CE |
Contact number | 674 2340105 |
Contents
Where is the Lingaraj Temple | लिंगराज मंदिर कहा है?
अगर आप Lingaraj Temple के बारे में जानना चाहते है या लिंगराज मंदिर को देखना चाहते है तो हम आपको बता दे की लिंगराज मंदिर भारत देश के ओडिशा राज्य के राजधानी भुवनेश्वर मे स्थित है। यह मंदिर हिंदुओ के लिए एक बहुत ही बड़ी मंदिर है। साथ ही यह मंदिर भुवनेश्वर कि मुख्य मंदिर होने के साथ साथ वहा के प्राचीनतम मंदिरो मे से एक है।
Why is Lingaraja Temple famous | लिंगराज मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
प्राचीन कथाओं के अनुसार इस मंदिर का इतिहास यह है कि यहां पर लिट्टी और वसा नाम के दो राक्षस रहा करते थे जो यहां के लोगों को परेशान करते रहते थे और उन्हें मारकर खा जाते थे। वहां पर देवी पार्वती जब आई और उन्होंने यह सब देखा तो उनका लड़ाई दोनों राक्षसों के साथ हुआ।
इस लड़ाई में देवी पार्वती विजई रही। लेकिन देवी पार्वती युद्ध करते करते थक गई थी और उन्हें प्यास लगी थी तो उनकी प्यास बुझाने के लिए शिवजी ने एक कुंडा खोदा और सारे नदियों को मदद के लिए बुलाया। सारी नदियां मदद के लिए आई और नदियों का पानी देवी पार्वती ने पिया और अपनी प्यास बुझाई।
कहा जाता है कि यह घटना लिंगराज मंदिर के सामने हुई थी और देवी पार्वती को लिंगराज देवता ने शक्ति प्रदान की थी और उन्हें दोनों राक्षसों से युद्ध जीताने में मदद की थी। तभी से इस मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ गई।
Which god is worshiped in this temple | इस मंदिर में किस भगवान कि पूजा कि जाती है?
लिंगराज मंदिर भगवान श्री त्रिभुवनेश्वर को समर्पित किया गया है। यानी कि लिंगराज मंदिर में त्रिभुवनेश्वर भगवान की पूजा की जाती है। लेकिन इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में आप सीधे त्रिभुवनेश्वर भगवान की पूजा नहीं कर सकते हैं। उनकी पूजा करने से पहले आपको कई भगवान के पूजा करने पड़ेंगे और नदी में स्नान भी करना पड़ेगा। चलिए जानते हैं कि आपको त्रिभुवनेश्वर भगवान की पूजा करने के लिए क्या क्या करने पड़ेंगे।
यहां की पूजा पद्धति के नियमों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति त्रिभुवनेश्वर भगवान की पूजा करने जाता है तो सबसे पहले उसको बिंदु सरोवर में स्नान करना होगा, उसके बाद उसको क्षेत्रपति अनंत वासुदेव की पूजा करनी होगी, उसकी बात गणेश जी की पूजा की जाती है और फिर गोपालनी देवी की पूजा की जाती है, उसके बाद शिव जी की बहन नंदी की पूजा करने के बाद भगवान त्रिभुवनेश्वर की पूजा करने को मिलेगी।
When was this temple established | इस मंदिर कि स्थापना कब कि गई थी?
इस मंदिर के इतिहास के अनुसार सोमवंशी राज्य के राजा ययाति केशरी जब 11 वीं शताब्दी में अपने राजधानी को जयपुर से भुवनेश्वर किया उसी वक्त मंदिर की स्थापना की गई थी। जिस स्थान पर मंदिर है उस स्थान को एकाग्र स्थान कहा गया है।
यह मंदिर 150 मीटर वर्गाकार की भूमि पर बनाया गया है। इस मंदिर की कलश की लंबाई 40 मीटर है। मंदिर के निकट ही एक बिंदु सागर नाम का सरोवर है जिस सरोवर में भारत की लगभग सभी नदियों का जल आता है। ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से पाप मोचन होता है। अगर आप तो त्रीभुनेश्वर भगवान की पूजा करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले इस सरोवर में नहाना पड़ेगा।
Architecture and beauty of Lingaraja temple | लिंगराज मंदिर का रचना एवं सौंदर्य
यह मंदिर पूरी उत्तरी भारत के मंदिरों में से सबसे सुंदर और भव्य मंदिर माना गया है। यह मंदिर अपने अनुपम स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर में जितनी भी मूर्तियां बनाई गई है सारी मूर्तियां कारीगरी और मूर्तिकला कि एक चमत्कार है। इस मंदिर का शिखर भी उत्तरी भारत के मंदिरों में सबसे ऊंचा है। इस मंदिर का आकार नीचे तो समकोण और सीधा जैसा दिखता है परंतु जैसे ही हम ऊपर की ओर देखते हैं यह मंदिर हमें वक्र दिखाई देने लगता है। कुल मिलाकर अगर हम कहे तो यह मंदिर वर्तुल आकार का है।
इस मंदिर का शीर्ष बाकी सारे मंदिरों की तरह छोटे-छोटे गुंबदों जैसा नहीं है। मंदिर की पार्श्व-भित्तियों पर बहुत ही सुंदर तरीके से नक्काशी की गई है जिसे देखने पर ऐसा लगता है की यह मंदिर नई नई बनी है। लिंगराज के पूरे मंदिर में जगह जगह पर जानवरों और चिड़ियों से संबंधित चित्र बनाया गया है और कहीं-कहीं तो जानवरों और चिड़ियों की मूर्ति भी बनाई गई है। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 180 फुट है। गणेश, कार्तिकेय और माता गौरी की भी तीन छोटी-छोटी मंदिर है जो इस मंदिर से संलग्न रूप से जुड़ी हुई है। माता गौरी वाले मंदिर में माता गौरी की एक काले पत्थर वाली प्रतिमा है जो देखने मे बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ती है।
Last Words | निष्कर्ष
दोस्तों आज हमने आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से लिंगराज मंदिर के बारे में निम्नलिखित चीजें बताई। जैसे कि लिंगराज मंदिर कहा है, ये मंदिर क्यों प्रसिद्ध है, इस मंदिर में किस भगवान कि पूजा कि जाती है, इस मंदिर कि स्थापना कब कि गई थी, लिंगराज मंदिर का रचना एवं सौंदर्य।
तो उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा और इसमें दी गई सारी जानकारी आपको बिल्कुल अच्छे से समझ में आ गई होगी। अगर आपको हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगा तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें और अगर आप चाहे तो इसे अपने सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते हैं ताकि आप से जुड़े सभी व्यक्तियों को इस मंदिर के बारे में अच्छी तरह पता चल जाए।
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